फालतू बातें सोचकर।
कभी-कभी कुछ कुछ तो सूना तो करो
दुआ सलाम भी दिल से फरमाया तो करो
बात करो जब प्रेम की शरमाया तो न करो
हमें भी आती है झेप पर “समय जाया तो ना करो “
सुनो मेंरे बंधू बांधव परहेज कभी ना करो
'सच बोलने डर से' मुंह मोड़ा तो न करो
'कैसी बदी फैली है आजकल' उसे अपनायातो करो
यौवनधन का पतन हो रहा, उसे भी सहन तो ना करो
'नारी का शोषण हो रहा' बढावा ना उसे दिया करो
'करना पड़े यदि किनारा आप से' एतराज किया तो ना करो
'समन्दर का पाना है मोती तो 'डूबने का बहांना तो न करो
डरते तो आग और पानी से 'पीने का बहाना तो ना करो'
आज क्या हो गया है आप सब को?
आँख मूंदकर कहते हो चलने को
ड्रग का सेवन हो रहा खुल्ले बाजार में
देश का बेग गर्क हो रहा भरी सभा में
'शराब में धुत रहना आम सी बात हो गयी है'
चोरी चकारी और धोखाघडी खून में समा गयी है
रात ही रात में मुझे लखपती बन जाना है
देश जाय धरातल में, मुझे उस से क्या लेनादेना है?
मुझे शर्म नहीं आ रही अपने आप पर
मैंने बदल जाना है हवा का रुख जान कर
आजकल बहती गंगा में सब हाथ धो लेते है
मुझे क्योँ अपना जीवन बिगाड़ना है सज्जन हो कर?
ये सोच है आजकल आम जीवन में
'में भटक रहा यहाँवहां ओर वन वन में'
कोयल चहक रही है इस बात को ले कर
क्यों उझाड़ रहे हो मेरा घोंसला फालतू बातें सोचकर।
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Rohani Daud likes this. Hasmukh Mehta welcome a few seconds ago · Like · 1 Rohani Daud Nice poem.. a few seconds ago · Unlike · 1