गिरगिट की तरह बदल रंग फिर एक साल आया,
देखते है इसने अब किस रंग को है अपनाया I
बेरंग हो चली थी ज़िन्दगी सभी कि इस महामारी से,
ज़ख्म छुपा कर फिर भी सब लग गए स्वागत की तैयारी में I
फिर सूरज इन जमी बर्फ को पिघलाने में लग जायेगा,
फिर नदी का पानी उछलता कूदता पहाड़ों से गिर जायेगा I
पंछी फिर उन्ही पंखों से नयी उड़ान भरेगा,
भोर का कोहरा फिर से छटता जायेगा I
ओस की बूंदे फिर पंखुड़ियों को चूमने लगेगी,
फिर झूम के मल्हार कोई नया गीत गयेगा I
छोड़ दो अब सब शिकवे और गिले पुराने वही पर,
बदल लो अपने रंग और ढंग इक्कीस के आगमन पर I
Badal do rang sur dhang ikees ke aagaman par....bhula do aapne har gile shilwe sab purane....aasman ke sunhere rang ke sang
Kya kehna, josh aur utsah se bhari is kavita se apne mann gad gad kar diya. Nav varsh ki subhkamanayen
छोड़ दो अब सब शिकवे और गिले पुराने वही पर, बदल लो अपने रंग और ढंग इक्कीस के आगमन पर // पिछले वर्ष के सभी सितम भुला कर नए वर्ष का नयी आशाओं व विश्वास से स्वागत करती हुई यह कविता दिल में उमंग का सचार करती है. हार्दिक धन्यवाद, मित्र असीम जी. बहुत बहुत शुभकामनायें.
Sir your recent two poems are not visible....this pome is always expressive and beautiful.
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Bahut khoob sir ji. Naya saal mubarak.