दूर होकर ही तुमसे, तुम्हारी याद आईll Poem by Rahul Awasthi

दूर होकर ही तुमसे, तुम्हारी याद आईll

Rating: 5.0

दूर होकर ही तुमसे, तुम्हारी याद आईl
छाँव से निकले जो तुम्हारी तो, अपनी हैसियत याद आईll

तुमसे दूर होकर ही, कुछ कर गुजर सकता हूँ मैंl
ये ग़लतफहमी भी हज़ार बार याद आईll

चलो इस ग़लतफहमी का भी शुक्रियाl
आखिर तुम्हारी कीमत तो जान पायीll

दूर होकर ही तुमसे, तुम्हारी याद आईll

Wednesday, August 31, 2016
Topic(s) of this poem: father,father and son,fathers day
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem dedicated to my father...😊😊😘
शायद में ही नही बल्कि हर किसी के साथ ऐसा होता है।
जब पिता की एहमियत पता लगती है।
love u papa
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success