गरीब पर सच्चाm Garib Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

गरीब पर सच्चाm Garib

गरीब पर सच्चा

ना दुनिया बदली है ना बदलेगी
वो जरूर बदला लेगी
यदि आपसे थोड़ी सी भी चूक हुई
और उनकी नजर में आई।

आज थोड़ी तबदीली आई है
नजर पैनी और जहरीली हुई है
दिखावा मधुरताका और आपसी का
पर अंदर से सियासी चाल का।

'अरे भाई उसकी बहुत पहुंच है'
पैसा भी बहुत खरचते है
सम्बन्ध रखने में फायदा ही है
बस यहीं प्रथा सर्वदा है।

बात सही भी है
जीवन थोड़ा सा है
क्यों ना उसे रोचक बनाया जाय?
सम्बन्ध बाँधने में क्यों संकोच रखा जाय?

सब तो स्वार्थ के सगे है
सभी अपने में लगे है
कोई बुराई नहीं सही समबन्ध बांधने में!
सब ने रखना है अभिमान अपने आप में।

किसी को पढाना हो तो दो तीन वेद पढ डालो
उसके कानो में अपनी बात जरूर डालो
फिर अपना असर धीरे धीरे हावी होने दो
मकसद अपना पूरा हो जाने दो।

'कोई कहे में रिश्ते से परे हूँ ' और स्वार्थ की बून्द नहीं
तो समझो वो झूठा, मक्कार और आदमी सही नहीं
वो ज्यादा भरोसेमंद नहीं और अपने लायक नहीं
इस से अच्छा गरीब पर सच्चा तो सही।

गरीब पर सच्चाm Garib
Monday, June 5, 2017
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

वो जरूर बदला लेगी यदि आपसे थोड़ी सी भी चूक हुई और उनकी नजर में आई

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welcoem manisha mehta Like · Reply · 3 mins

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welcome sarika sathwara Like · Reply · 3 mins

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welcome hcl hcl Like · Reply · 1 · Just now

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welcoem Kamini Shah Like · Reply · 1 · Just now

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welcoem rupal kadiya Like

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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