मन लागो अमीरी में
शुक्रवार, २९ मई २०२०
मन लागो मेरो अमीरी में
पाँव बढे आगे खुमारी में
याद आए सुख बिमारी में
कोई सगा नहीं महामारी में।
पैसे जैसा सुख नहीं
उसके बिना भूख मिटती नहीं
पैसा है नंदकुमार नाम
बिन पैसे नन्दिआ सारे गाम।
मैंने समझ लिया
ओर मंत्र अपना लिया
फकीरी मे क्या रखा है?
अमीरी में ही सुख चखना है।
लक्ष्मी है तो सजनी है
बाकि दुनिया अपनी नहीं है
लोग पूछेंगे जब आप धनवान है
आपके गृह भी बलवान है।
दुनिया में आगे किसने देखा है?
संसार का सुख किसने नहीं भोगा है?
सब कहते है ये सब नसीब का लेखा-जोगा है!
पैसे से सभी ने ये चीज को भोगा है।
पैसे से सभी पीड़ित है
जिस के पास है वो भी प्रताड़ित है
जिस के पास नहीं, वो दुखी तो नहीं है
पर हमेशा अपने को कहता सुखी नहीं है।
जाना सब छोड़ के जरूर है
फिर भी बहुत ज्यादा गुरुर है
दिन तय है फिर भी मोह है
मानव नहीं पिगलता बस पिगलता लोह है।
हसमुख मेहता
बहुत ही सुन्दर विचार किया है और अच्छे से समझाया.. harish dahyabhai
S. R Chandralekha 178 mutual friends Message Sheetal Mehta 17 mutual friends Message
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
जाना सब छोड़ के जरूर है फिर भी बहुत ज्यादा गुरुर है दिन तय है फिर भी मोह है मानव नहीं पिगलता बस पिगलता लोह है। हसमुख मेहता