मन लागो अमीरी में... Man Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

मन लागो अमीरी में... Man

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मन लागो अमीरी में
शुक्रवार, २९ मई २०२०

मन लागो मेरो अमीरी में
पाँव बढे आगे खुमारी में
याद आए सुख बिमारी में
कोई सगा नहीं महामारी में।

पैसे जैसा सुख नहीं
उसके बिना भूख मिटती नहीं
पैसा है नंदकुमार नाम
बिन पैसे नन्दिआ सारे गाम।

मैंने समझ लिया
ओर मंत्र अपना लिया
फकीरी मे क्या रखा है?
अमीरी में ही सुख चखना है।

लक्ष्मी है तो सजनी है
बाकि दुनिया अपनी नहीं है
लोग पूछेंगे जब आप धनवान है
आपके गृह भी बलवान है।

दुनिया में आगे किसने देखा है?
संसार का सुख किसने नहीं भोगा है?
सब कहते है ये सब नसीब का लेखा-जोगा है!
पैसे से सभी ने ये चीज को भोगा है।

पैसे से सभी पीड़ित है
जिस के पास है वो भी प्रताड़ित है
जिस के पास नहीं, वो दुखी तो नहीं है
पर हमेशा अपने को कहता सुखी नहीं है।

जाना सब छोड़ के जरूर है
फिर भी बहुत ज्यादा गुरुर है
दिन तय है फिर भी मोह है
मानव नहीं पिगलता बस पिगलता लोह है।

हसमुख मेहता

मन लागो अमीरी में... Man
Friday, May 29, 2020
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM

जाना सब छोड़ के जरूर है फिर भी बहुत ज्यादा गुरुर है दिन तय है फिर भी मोह है मानव नहीं पिगलता बस पिगलता लोह है। हसमुख मेहता

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बहुत ही सुन्दर विचार किया है और अच्छे से समझाया.. harish dahyabhai

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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