प्रेम का इतिहास...Premka Itiihaas Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

प्रेम का इतिहास...Premka Itiihaas

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मेंरे दिल में यह बात घुमती है
थोडी सी चाहत और चुभती है
मन को पसंद और सुहाती है
कौन जाने ऐसी चाहत मनको क्यों लुभाती है?

प्यार का अनोखा रूप कहाँ देखने को मिलता है?
किसी को अनजाने में भी अक्सर काफी रुलाता है
आदमी बेकसूर हो फिर भी मनको मनाता है
'ढाई अक्षर प्रेम के दिल को समजाता है

बात यहाँ हो नहीं रही इंसानी रूह की
बात यहाँ हो रही सिर्फ लालसा देह की
सुन्दर मुखड़े पे लुटा देते है
जान भी अक्सर उनके पीछे मिटा देते है

ना करो मनमानी जिस्म तो है फानी
फिर रह जाएगी पीछे सिर्फ कहानी
न कोई याद करेगा न कोई रोएगा
करेगा दोस्त अफ़सोस दोस्तीका और पछताएगा

में करू वंदन चाहत भरी आंखो का
जिसने ना देखा रंग हसरत भरे ख्वाबोंका
पर चाहत तो आखिर में चाह ही है
मर भी जाए राह में, कोई परवाह नहीं है

प्यार तो किया था मीरा ने अपने श्याम को
राधा ने लगा दिया चार चाँद, काले घनश्याम को
हम क्यों करे एतराज अपने काले कंथ से?
मिल जाए अपने भाग्य से, खुश रहे इसी सोच से

प्यार है बंधन अनोखा और समूचे विश्वास का
कायम रहे जीवन में इंतज़ार करे साँस का
कब हो जाएगा आखरी, मधुरा ये एहसास?
पल भर में रचा जाएगा प्रेम का इतिहास

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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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