'समय का अभाव' Samay Kaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

'समय का अभाव' Samay Kaa

'समय का अभाव'

ऊपर अम्बर
नीचे आडम्बर
दुनिया चलती रहे
निगाहें तरसती रहे।

कौन किसको पूछता है?
आंसू कौन लुछ्ता (पोंछता) है?
'समय का अभाव' सब का एक ही है जवाब
पर में कैसे कहूँ अपना दर्द आपको जनाब?

आपने अपनी नवाबी दिखादी
गुलबांगो की झड़ी लगा दी
बस हम तो झांसे में आ गये
सपने आपने दिखाये ओर खो हम गए।

आप कहते गए
हम सपने बुनते गए
आपने कुछ और अर्थ निकाला
तर्जे ऐसे पेश की जैसे हो कोई हम से दीवाना।

प्यार में सब बह जाते है
पर बाद में बहुत याद आते है
छूटने का गम तो सताता ही है
पर सारी रात रुलाता भी है।

मेरी आशीकी तो देखो
उसमे बहते रंगीन सपने को खोजो
कुछ तर्जे ऐसी मिलेगी
आप के कलेजे को भी झंजोड़ कर रख देगी।

'समय का अभाव' Samay Kaa
Thursday, December 1, 2016
Topic(s) of this poem: poem
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 01 December 2016

मेरी आशीकी तो देखो उसमे बहते रंगीन सपने को खोजो कुछ तर्जे ऐसी मिलेगी आप के कलेजे को भी झंजोड़ कर रख देगी।

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Mehta Hasmukh Amathaal

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Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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