Sarhad Ke Paar - सरहद के पार Poem by Abhaya Sharma

Sarhad Ke Paar - सरहद के पार

सरहद के पार
एक आवाज आती है
मीठी मधुर तान कोई बुलाती है
बूढ़ों की बच्चों की रंगो की सपनों की
यादें दिलाती है

वो जामुन के पेड़ों की
आमों के किस्मों की
तांगे के घोड़े की
लल्लन लपेटे की
बातें सभी आज
दिल में फिर आती है

वो हामिद का चिमटा
वो किस्से कहानी
वो गालिब चचा की
गज़ल की रवानी
कोई मुझसे पूछे
है क्या दिल में ठानी

कैसे किसी ने
ये दिल तोड़ डाले
थे दामन में किसने
ये धब्बे लगाये
क्यों फिर ये दीवारें
खड़ी हो गईं है
ये अपनी जमीं
क्यों पराई लगी है

ओ जुम्मन के चाचा
रकीबों के ख्वाजा
तबस्सुम की खाला
दें किस का हवाला
कहां खो गये हैं
वो संगी सहारे
आवाज़ देकर किसे
अब पुकारें
बुलाते जिन्हें हम
क्या वो सुन रहे हैं

अज़ीमुल्ला खां साहब
कहां हो बताओ
हमें जंगे आज़ादी
फिर से सिखाओ
गुलामी में कैसी
बुरे हम फंसें हैं


चलो फासले आज
सारे मिटा दें
जो दूरी दिलों में है
उसको भुला दें
अभय को हम अहमद से
फिर से मिला दें
वतन को वतन से
वतन में मिला दें ।



अभय शर्मा
9 फरवरी 2010

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Acroos the border is a poem written for unification of India and Pakistan
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Abhaya Sharma

Abhaya Sharma

Bijnor, UP, India
Close
Error Success