घर कीमुर्ग़ीदाल बराबरअस्सी रुपए प्याज Poem by NADIR HASNAIN

घर कीमुर्ग़ीदाल बराबरअस्सी रुपए प्याज



मोदि जी वाह मोदि जी, मोदि जी वाह......

जुमले बनगए सारे वादे पहन के शाही ताज
घर की मुर्ग़ी दाल बराबर अस्सी रुपए प्याज
मोदि जी वाह मोदि! ! जी मोदि जी वाह....

मिलेगा पंद्रह लाख था वादा
मिला ना अबतक सिक्का आधा
काले धन की बात थी पूरी
महगाई से मिलेगी दूरी
समझा सबने भाग्य विधाता
खुल गया जन धन लाखों खता

महगाई ने किया वह हाल
छिन गयी सूखी रोटी दाल
आलू, बैगन, लौकी, साग
हर सब्ज़ी में लगगई आग
डीज़ल हो या हो पेट्रोल
दाना खाना है अनमोल

पी एम फॉरेन टूर पे रहते
मन की बातें खूब हैं करते
भूल गए हैं ज़िम्मेदारी
देश की जनता बनी भिखाड़ी
अच्छे दिन थे आने वाले
जीने के परगएहैं लाले
जल गया गेहूं दलहन धान
आत्म हत्तेया करे किसान
ना कोई अवसर रोज़गार है
युवा पथ पे बिछी ख़ार है
एम.ए, जी.ए की है धूम
होगया उनका बिज़नेस बूम

पूजी पति वयापारी की ये बनगई है सरकार
जुमले बनगए सारे वादे पहन के शाही ताज
मोदि जी वाह मोदि जी! ! ! मोदि जी वाह....

By: नादिर हसनैन

घर कीमुर्ग़ीदाल बराबरअस्सी रुपए प्याज
Thursday, October 22, 2015
Topic(s) of this poem: sadness
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success