शादाब शजर ख़ुशहाल बशर इंसाफ़ अगर ना पाएगा
उस वीरान शहर में पंछी लौट के फिर क्यों आएगा
रहबर ही जब ज़हर है घोले अपने शहर की माटी पर
ऐसे शहर के मज़लूमों को अदल कहाँ मिल पाएगा
भाई ख़ून का पेयासा है और घर मेरा शमशान बना
जबसे मेरे नगर का हाकिम एक वहशी शैतान बना
ख़ौफ़ के मारे थर थर काँपे हर तन्हा मजबूर यहाँ
देश का दुश्मन बना ख़लीफ़ा मुजरिम क्यों घबराएगा
किया धमाका ग़द्दारों ने जो माँ का सौदा करते हैं
सुन वहशी शैतान दरिंदे मासूम हज़ारों मरते हैं
क्या बीतेगी सोच ज़रा तू ख़ून के आँसू रोएगा
तेरे जिगर का टुकड़ा भी जब ज़द में एक दिन आएगा
मासूमों के ख़ून से खेले मोमिन वोह बेदर्द नहीं
अमन का पैकर दीन का दाई मुस्लिम दहशतगर्द नहीं
देख रहा है जग का दाता जोश में जिस दिन आएगा
ऐ ज़ालिम मिट जाएगा तू खाट पड़ा रहजाएगा
हाथ में क़ुरान सर पे टोपी विर्द ख़ुदा का करता है
हर इल्ज़ाम बता दे नादिर उसी के सर क्यों पड़ता है
माँ का आँचल सूना करके तड़प रहा है जेलों में
वोह मज़लूम मुसलमा फिर से लौट के घर कब आएगा
: नादिर हसनैन
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DIl ko choo jaane wali nazm hai....Bahut khoob....