निशानी ये गन्दी सियासत की है Poem by NADIR HASNAIN

निशानी ये गन्दी सियासत की है

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लहू से भिगो कर सियासत का दामन
बेख़ौफ़ निर्लज रियासत का रावण
मस्जिद भी तोड़ी और मंदिर भी तोड़ा
खुदा के ना भगवान के घरको छोड़ा
निशानी ये गन्दी सियासत की है
हिटलर के जैसी रियासत की है


बिसहड़ा के अखलाक़ का क़त्ले आम
मुज़फ्फर नगर की तड़पती अवाम
माले गाओं के अंदर लहू का नहर
मक्का मस्जिद में ख़ूनी वह बम का क़हर
निशानी ये गन्दी सियासत की है
हिटलर के जैसी रियासत की है

वह दिलदोज़ मंज़र चौरासी का हो
अयोध्या हो या सन नवासी का हो
कश्मीरी पंडित उड़ीसाई चर्च
ग़रीबों का पैसा अमीरों में खर्च
निशानी ये गन्दी सियासत की है
हिटलर के जैसी रियासत की है

गुजरात में क़त्ले इंसानयत
जयपूर की ख़ूनी हैवान्यत
हैदराबाद हो या गुहाटी शहर
हर तरफ बहरही ये लहू की नहर
निशानी ये गन्दी सियासत की है
हिटलर के जैसी रियासत की है

बनारस या मुम्बई का सीरियल बलास्ट
ना पूछे है मज़हब ना देखे है कास्ट
ना मज़लूम का कोई सरदार है
फ़िरक़ा परस्तों की जय कार है
निशानी ये गन्दी सियासत की है
हिटलर के जैसी रियासत की है

हिन्दू हैं मुस्लिम हैं सिख हैं इसाई
आपस में सब एक दूजे के भाई
भाई भाई को दुश्मन बनाया पिशाज
मज़हब को बांटा और बांटा समाज
निशानी ये गन्दी सियासत की है
हिटलर के जैसी रियासत की है


By: नादिर हसनैन

Saturday, October 17, 2015
Topic(s) of this poem: hate
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