चोट लगती रही ज़ख्म खाते रहे! ! ! ! Poem by M. Asim Nehal

चोट लगती रही ज़ख्म खाते रहे! ! ! !

Rating: 5.0

चोट लगती रही ज़ख्म खाते रहे
ज़िन्दगी के मज़े भी उठाते रहे

दाग़ लगने दिए न बुराई के हम
दामन अपना सदा ही बचाते रहे

मुश्किलों से भी तो हमने खेला किया
दर्द को भी तो अपने दबाते रहे

आप की बेरुखी से न बेचैन हुए
चैन से आपको भी मनाते रहे

सोच अपनी जहाँ से मुख़तलिफ़ ही सही
मुत्तफ़िक़ी के सबक हम सीखते रहे

चोट लगती रही ज़ख्म खाते रहे
ज़िन्दगी के मज़े भी उठाते रहे

Thursday, December 10, 2015
Topic(s) of this poem: life,love
COMMENTS OF THE POEM
Abhilasha Bhatt 28 February 2016

Beautiful poem.....liked it....thank you for sharing :)

1 0 Reply
Akhtar Jawad 24 December 2015

Ek khoobsoorat ghazal........................................................

2 0 Reply
T Rajan Evol 13 December 2015

Wah kya badiya hai..10++

2 0 Reply
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