आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं
बोली है मीठी अगर समझूँ कभी
जब चंदा से पुछू आज कैसी है वो
छिप छिप बादल में कह जाए सब ख्वाइशें तेरी
जब जुगनू से पुछू कभी सुनती है वो
सुन सुन सब कह जाए वो आरज़ूएं तेरी
अगर कहदे कुछ आके ये आंखे तेरी
जो सहजे ना तुझको वो मुझको सही
बस देदे तू मुझको ये दौलत भली
सजादूँ सब इनमे मैं खुशियाँ तेरी
जुस्तजू में तेरी भटकें मुसाफिर भला
इश्क़ में मर जाए बस ख्वाइशें यहीं
आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं
बोली है मीठी अगर समझूँ कभी
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आंखे जो तेरी कुछ कहती नहीं बोली है मीठी अगर समझूँ कभी....... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और कल्पनाशीलता. धन्यवाद.