ये आज क्यों कोई.. कमी सुलगी Poem by Tarun Upadhyay

ये आज क्यों कोई.. कमी सुलगी

ये आज क्यों कोई.. कमी सुलगी
पाँव रक्खा तो झट.. ज़मीं सुलगी
कुछ मौसम ही.. घटा में भीगा है
या आँखों से ही.. ये नमी सुलगी
जलावन तो पड़ी थी अरसे से
एकाएक क्यों फ़िर झोपड़ी सुलगी
आज चाहा था मिटाना इस को
मुझे मालूम है ये तभी सुलगी ।

...... संस्कृता मिश्रा

COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success