शौकीन रहे Poem by Rahul Awasthi

शौकीन रहे

सब लोग उम्र भर मेरी हिम्मत, मेरा हौसला आज़माने के शौकीन रहे!
मंज़िले दूर रही या पास फर्क ही क्या
पड़ा
क्योंकि हम तो मंज़िलो को पाने के शौकीन रहे।
यार ये एक दो पत्थर जो मेरी राह में हैं, क्या मेरा ख़ाक बिगाडेंगे
हम तो उम्र भर राहो से चट्टान हटाने के शौकीन
रहे।
मेरी खुशियाँ भी किसी के दुःख
का सबक बनी तो होंगी
इसलिए हम दुश्मनों को देख के मुस्कुराने के शौकीन रहे।
जिसे दिल से चाहा उसे उम्र भर आँख उठा कर ना देख...ll

This is a translation of the poem Sokeen Rhe.. by Rahul Awasthi
Tuesday, August 16, 2016
Topic(s) of this poem: motivation,motivational
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