सूखी रोटी ना मिली किसी धनवान के घर Poem by NADIR HASNAIN

सूखी रोटी ना मिली किसी धनवान के घर

मेरी फरयाद सुनो मेरी फरयाद सुनो
मैं भी इंसान हूँ मेरी फरयाद सुनो

आओ नज़दीक मेरे दिल की बातों को कहूँ
नहीं कोई है मेरा मेरी फरयाद सुनो


मेरी क़िस्मत ने मुझे ऐसा बर्बाद किया
ठोकरें खाता हूँ मैं जब भी फरयाद किया

मेरा भगवान भी तो रूठा मुझ से है लगे
मारा क़िस्मत का हूँ मैं मेरी फरयाद सुनो


लबों पर जान आई भूखा प्यासा हूँ मगर
सूखी रोटी ना मिली किसी धनवान के घर

ग़ुलामी कररहे हैं भरेगा पेट पापी
बहुत मजबूर हूँ मैं मेरी फरयाद सुनो


देश की शान बनूँ मैं निगहबान बनूँ
चाहता दिल है मेरा ऊँचा मैं काम करूँ

बच्चे स्कूल चले नौकरी पर मैं चला
बाल मज़दूर हूँ मैं मेरी फरयाद सुनो


: नादिर हसनैन

Saturday, October 29, 2016
Topic(s) of this poem: pray
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