जाग मुसाफिर Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जाग मुसाफिर

Rating: 4.8

जाग मुसाफिर
Sunday, September 6,2020
7: 31 AM

तू अपनी धुन गुनगुनाता चल
और खुश रहना हर पल हर पल
दुनिया दस्तूर है दिखाना बेरुखी
तू ना हो इससे कभी दुखी।

मिल जाए यदि कोई साथी
बना देना अपना संगाथी
उठेंगे भंवर शांत समंदर में
नागभराना, शांत रहना अंदर से।

अंदर की पीड़ा किसीको ना बताना
लोग करेंगे हांसी और प्रताड़ना
इन सब बातोंसे बच के रहना
अपना गीत सबको सुनाना।

तेरे गीतों का असर तो होगा
कोईजिगर से रोता होगा
अपने आपसे पछतावा करता
दिलही दिल से कोसता होगा।

जीवन मधुर है पल भी सुन्दर
झांक के देखो अपने अंदर
कभी ना भुलाता गुलांट को बंदर
खिसियानी बिल्ली नोचे खम्भा, ना कोई देखे भीतर।

तू है निराला, सबसे अनोखा
तू दिख जाता सब से नोखा
चलना तेरी आदत है
गाना तेरी इबादत है।

उठ जाग मुसाफिर सुबह हुई
गलती तेरी पहलेसे हुई
अब उसे है तूने संवारना
ज्यादा बेइज्जती को रोके रखना।

डॉ जाडिआ हसमुख

जाग मुसाफिर
COMMENTS OF THE POEM
Mehta Hasmukh Amathalal 06 September 2020

अब उसे है तूने संवारना ज्यादा बेइज्जती को रोके रखना। डॉ जाडिआ हसमुख

0 0 Reply
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
Close
Error Success