छाई निशा घनेर,
हो गई है देर;
चंभित हुई अंबर को देख,
बोल उठी चम्पा भोली-
आ रही चंदा की डोली।
पवन चल रहा जोर-जोर,
अंधकार फैला चारों ओर;
वाचाल बनी सिंधु-लहरों की बोली,
आ रही चंदा की डोली।
सभी ऊँघ रहे स्वप्न में,
चादर ओढ़े सदन में;
प्रस्थान की संग तारकों की टोली,
आ रही चंदा की डोली।
खिल उठी रातरानी प्यारी,
दमक उठी पृथ्वी जननी हमारी;
किए पूर खुशियों से झोली,
आ रही चंदा की डोली।
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