नाच रहा है मोर Poem by Sachin Brahmvanshi

नाच रहा है मोर

Rating: 5.0

हो गया है भोर,
वर्षा हुई घनघोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|

बयार चल रही चारों ओर,
तृप्त हुआ अवनि का एक-एक छोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|

उर में हर्ष नहीं है थोर,
दादुर मचा रहे हैं शोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|

धरणी कहती- आनंदित है पूत मोर,
कहाँ छिप गया दीनकर चोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|

जीव-जंतु हुए आनंदभोर,
टूट गई ग्रीष्म की डोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|

नाच रहा है मोर
Saturday, September 2, 2017
Topic(s) of this poem: rain
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 02 September 2017

वर्षा ऋतु का सुंदर काव्यात्मक चित्रांकन. अद्वितीय रचना.

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Sachin Brahmvanshi

Sachin Brahmvanshi

Jaunpur, Uttar Pradesh
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