हो गया है भोर,
वर्षा हुई घनघोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|
बयार चल रही चारों ओर,
तृप्त हुआ अवनि का एक-एक छोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|
उर में हर्ष नहीं है थोर,
दादुर मचा रहे हैं शोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|
धरणी कहती- आनंदित है पूत मोर,
कहाँ छिप गया दीनकर चोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|
जीव-जंतु हुए आनंदभोर,
टूट गई ग्रीष्म की डोर;
बाँधे प्रीति की डोर,
नाच रहा है मोर|
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वर्षा ऋतु का सुंदर काव्यात्मक चित्रांकन. अद्वितीय रचना.