बरखा-सी इठलाती,
लोगों को हर्षाती;
सौम्यता भरी कलियों-सी,
घर पधारी सुनहरी परी|
माँ-बाप की यों दुलारी,
जीवन से ज्यादा प्यारी;
अंतर में सभी के बसती,
खुशियों का गीत रचती;
घर पधारी सुनहरी परी|
पढ़-लिखकर हुई सुशोभित,
ज्ञानसन्दूक किए अर्जित;
शिक्षा का पाठ पढ़ाती,
घर पधारी सुनहरी परी|
संघर्ष-भरे क्षण को भी,
मौका-ए-खास बनाती;
जिंदगी के विषाद को,
मुस्कान से यह हर लेती;
प्रेमभावी गुलशन संग लाती,
घर पधारी सुनहरी परी|
ज्यों विदा हुई पीहर से,
कैसे सँभाले पिता स्वयं को?
आज रुखसत हो गई उसकी,
घर पधारी सुनहरी परी|
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माता पिता के लिए उनकी बेटी सचमुच सुनहरी परी ही तो होती है जो जीवन के कष्टों में भी खुशिया बिखेरती है. विवाह के समय अपने कलेजे के टुकड़े को विदा करना बहुत कठिन घडी होती है. कविता में इन्हीं भावनाओं का सुंदर रेखांकन किया गया है. धन्यवाद.