घर पधारी सुनहरी परी Poem by Sachin Brahmvanshi

घर पधारी सुनहरी परी

बरखा-सी इठलाती,
लोगों को हर्षाती;
सौम्यता भरी कलियों-सी,
घर पधारी सुनहरी परी|

माँ-बाप की यों दुलारी,
जीवन से ज्यादा प्यारी;
अंतर में सभी के बसती,
खुशियों का गीत रचती;
घर पधारी सुनहरी परी|

पढ़-लिखकर हुई सुशोभित,
ज्ञानसन्दूक किए अर्जित;
शिक्षा का पाठ पढ़ाती,
घर पधारी सुनहरी परी|

संघर्ष-भरे क्षण को भी,
मौका-ए-खास बनाती;
जिंदगी के विषाद को,
मुस्कान से यह हर लेती;
प्रेमभावी गुलशन संग लाती,
घर पधारी सुनहरी परी|

ज्यों विदा हुई पीहर से,
कैसे सँभाले पिता स्वयं को?
आज रुखसत हो गई उसकी,
घर पधारी सुनहरी परी|

घर पधारी सुनहरी परी
Saturday, September 2, 2017
Topic(s) of this poem: birthday,girls
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 02 September 2017

माता पिता के लिए उनकी बेटी सचमुच सुनहरी परी ही तो होती है जो जीवन के कष्टों में भी खुशिया बिखेरती है. विवाह के समय अपने कलेजे के टुकड़े को विदा करना बहुत कठिन घडी होती है. कविता में इन्हीं भावनाओं का सुंदर रेखांकन किया गया है. धन्यवाद.

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Sachin Brahmvanshi

Sachin Brahmvanshi

Jaunpur, Uttar Pradesh
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