ऐ खुदा, हो मेहरबाँ Poem by Sachin Brahmvanshi

ऐ खुदा, हो मेहरबाँ

दुनिया के रखवाले जिससे सभी को डर,
आया एक सवाली तेरे दर पर;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।

रहमत तेरी सभी को मिले,
नफरत-भरे इस जहाँ में मोहब्बत-ए-फूल खिलें;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।

मेरी गुस्ताखियों को तू करना मुआफ,
तेरे दीदार को तड़प रही मेरी आँख;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।

ऐ ऊपरवाले, तेरे बंदों को एक पैगाम दे,
बैर न रहे किसी का किसी से;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।

राह-ए-जिंदगी में बनना हमदर्द,
कर दे परे दुनिया से ख्वाहिस-ए-खुदगर्ज़;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।

ऐ खुदा, हो मेहरबाँ
Sunday, September 10, 2017
Topic(s) of this poem: prayer
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Sachin Brahmvanshi

Sachin Brahmvanshi

Jaunpur, Uttar Pradesh
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