दुनिया के रखवाले जिससे सभी को डर,
आया एक सवाली तेरे दर पर;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।
रहमत तेरी सभी को मिले,
नफरत-भरे इस जहाँ में मोहब्बत-ए-फूल खिलें;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।
मेरी गुस्ताखियों को तू करना मुआफ,
तेरे दीदार को तड़प रही मेरी आँख;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।
ऐ ऊपरवाले, तेरे बंदों को एक पैगाम दे,
बैर न रहे किसी का किसी से;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।
राह-ए-जिंदगी में बनना हमदर्द,
कर दे परे दुनिया से ख्वाहिस-ए-खुदगर्ज़;
करूँ न कभी कोई दूसरी रज़ा,
ऐ खुदा, हो मेहरबाँ।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem