आग के दरिया-सा दहकना छोड़ देता ये दिल! Poem by Sachin Brahmvanshi

आग के दरिया-सा दहकना छोड़ देता ये दिल!

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काश इस कदर न आँखें मिलाई होती मुझसे एक रोज,
तो तेरे पलभर के दीदार को तरसना छोड़ देता ये दिल!
काश न तेरे प्यार की खुशबू आई होती मेरी ओर,
तो खिली हुई बगिया-सा महकना छोड़ देता ये दिल! !

काश न यूँ तेरी बातों का असर छाया होता मुझपर,
तो तेरे हर कहे अल्फ़ाज़ पर बहकना छोड़ देता ये दिल!
काश यूँ न एक दिल दूसरे दिल की चोरी को अंजाम दे पाता,
तो उस दिल के खातिर इस कदर धड़कना छोड़ देता ये दिल! !

काश न तूने संग रहने की कसमें दी होती मुझे,
तो तुझसे मिली रुसवाई के ग़म में तड़पना छोड़ देता ये दिल!
काश न तूने मेरे संग ज़िंदगी गुजारने के सपने सजाए होते इस कदर,
तो तुझे अपने ख्वाबों में तैरता देख चहकना छोड़ देता ये दिल! !

काश न तुझे पाने की आस तूने जगाई होती मेरे मन में,
तो तुझे खोने की सोच पर भी सहमना छोड़ देता ये दिल!
काश तेरे दिल में किसी और की तसवीर है यूँ कह दिया होता,
तो तुझे किसी और का होते देख आग के दरिया-सा दहकना छोड़ देता ये दिल! !

आग के दरिया-सा दहकना छोड़ देता ये दिल!
Monday, February 19, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and dreams,love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 15 March 2018

प्रेम की अभिलाषा के साथ प्रिय को खो देने का डर अथवा आशंकाओं से उत्पन्न एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति जहाँ सब कुछ अनिश्चित दिखाई देने लगता है. धन्यवाद, मित्र.

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Sachin Brahmvanshi

Sachin Brahmvanshi

Jaunpur, Uttar Pradesh
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