ऐ मेरी हुस्न-ए-मल्लिका, मुझे तू उल्फ़त का जाम दे दे,
हसीन तो मिलते हैं कई राह-ए-ज़िंदगी में, मगर
तुझे ही चाहूँ उम्रभर मैं, ऐसा मुझे कोई पैगाम दे दे! !
हर दिन हो होली और हर रात दिवाली हो,
यूँ मेरे दामन में तू अपनी सुबहो-शाम दे दे! !
गुमनाम हो जाऊँ तेरी दीवानगी में एक दिन मैं,
मुझे तू ऐसे ही सच्चे आशिक का नाम दे दे! !
मिसाल रह जाए तेरी-मेरी मोहब्बत की अरसों तक,
ऐसी यादगार अफ़्साना-ए-उल्फ़त को तू अंजाम दे दे! !
सजा दूँ तेरे गुलिस्ताँ को खुशियों से मैं,
चाहे क्यूँ न मुझे तू ग़मभरी सौगातें तमाम दे दे! !
ऐ मेरी हुस्न-ए-मल्लिका, मुझे तू उल्फ़त का जाम दे दे ! !
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem