ऐ ख़ुदा है कहाँ? सुन मेरी दास्ताँ
तड़प रही ये ज़मीं, रोरहा आसमां
नफ़रतों की भीड़ से तीर शमशीर से
लहू में तरबतर हुआ दिल, ज़ेहन जिस्म जां
ऐ ख़ुदा है कहाँ.....................
बूढ़े माँ, बाप हैं बच्चे, बीवी, बहन
ओढ़े आया है घर दिल का टुकड़ा कफ़न
बेरहम, बद ज़ेहन, ज़ुल्म बे ख़ौफ़ है
हिटलरी आम है मर रहा बेगुनाह
ऐ ख़ुदा है कहाँ....................
बे फ़िकर, बे ख़बर बाग़ का बाग़बाँ
फूल मुरझा रहे लुट रहा गुलसितां
हर शजर हर बशर हर धरम शान है
लुटने दूंगा नहीं मेरा हिन्दूस्तां
By: नादिर हसनैन (अलीनगरी)
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