कोख ना उजाड़ मैया मैं ही तेरी जान हूँ Poem by NADIR HASNAIN

कोख ना उजाड़ मैया मैं ही तेरी जान हूँ

कोख ना उजाड़ मैया मैं ही तेरी जान हूँ
आन बाण शान मैं ही तेरा अभिमान हूँ

मैया मेरी मेरे बिना कैसे रहपाऐगी
घर में गर नहीं है बुलबुल कौन खिलखिलाएगी
उलझे हुए बाल तेरे कौन सुलझाएगी
भाई की सुरक्छा हेतु राखी कौन लाएगी

बाग़ों में शादाबी लेकर फूल खिलने आई हूँ
तेरा ही सहारा मैं सहेली बनने आई हूँ

चूल्हा चौका झाड़ू पोछा सबमे हाथ बंटाऊंगी
सीने से लागले माई गीत गुनगुनाऊँगी
दादा दादी नाना नानी पापा का मैं पराण हूँ
कोख ना उजाड़ मैया मैं ही तेरी जान हूँ
: नादिर हसनैन (अलीनगरी)

Sunday, July 21, 2019
Topic(s) of this poem: horror,request
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