कोख ना उजाड़ मैया मैं ही तेरी जान हूँ
आन बाण शान मैं ही तेरा अभिमान हूँ
मैया मेरी मेरे बिना कैसे रहपाऐगी
घर में गर नहीं है बुलबुल कौन खिलखिलाएगी
उलझे हुए बाल तेरे कौन सुलझाएगी
भाई की सुरक्छा हेतु राखी कौन लाएगी
बाग़ों में शादाबी लेकर फूल खिलने आई हूँ
तेरा ही सहारा मैं सहेली बनने आई हूँ
चूल्हा चौका झाड़ू पोछा सबमे हाथ बंटाऊंगी
सीने से लागले माई गीत गुनगुनाऊँगी
दादा दादी नाना नानी पापा का मैं पराण हूँ
कोख ना उजाड़ मैया मैं ही तेरी जान हूँ
: नादिर हसनैन (अलीनगरी)
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem