न छेड़ो जनों हिन्द आजादी को Poem by Vivek Tiwari

न छेड़ो जनों हिन्द आजादी को

न छेड़ो जनों हिन्द आजादी को
शहीदों की अपने ये जागीर है
लाख वीरों की अमर कहानी है ये
लाख कुर्बानियों की ये सौगात है!
न छेड़ो जनों........! !
लाख लोगो के लथपथ लहू तन-बदन
तड़पते हुए छटपटाते हुए
जख्म सीने में जज्बातों में आग थी
और दिल में वतन के लिए फक्र था
धर्म रक्षा वतन के लिए गर्व से
वीर मंगल जी शूली चढ़ाये गए
भेंट बेटे के सिर की मिली बाप को
आहुति वीर रानी ने प्राणो की दी
जख्म लाठी के तन पे सहे केशरी
वतन के लिए निछावर हुए
भूल सकते नही हम ये कुर्बानियां
देशभक्तों की अपने ये जागीर है!
न छेड़ो जनों हिन्द आजादी को
शहीदों की अपने ये जागीर है! !
बाग़ जलिया में होली लहू की हुयी
सबने खेली लहू रंग-रंगेलियन
हंस के शूली चढ़े भगत-मित्रों ने
लगाते हुए हिन्द जय बोलियां!
न छेड़ो जनों..
शहीदों की अपने ये.......! !
विवेक तिवारी

Friday, August 15, 2014
Topic(s) of this poem: Patriotic
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This is about how India got her freedom.
COMMENTS OF THE POEM
Payal Parande 17 August 2014

brilliant piece by a brilliant man indeed, this poem is a symbol of the hard work and honor it brings with it, wonderful work sir

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