तुम्हारी आकाश छूने की लालसा Poem by Aftab Alam

तुम्हारी आकाश छूने की लालसा

Rating: 5.0

तुम्हारा ये चुम्बन ये अलिंगन
तुम्हारी आकाश छूने की लालसा,
तुमने अपनी प्यार की पत्तियो से,
मुझे ढक लिया, गजब किया,
मैं एक सूखा पेड़, तुमने हरा किया,

पक्षी घोंसला फिर से बनाने लगे,
डाल पर बैठ सुंदर गीत गाने लगे,
अब तो मेरे आँगन में, उत्सव है, शोर है,
मेरी आशा भी इन सूखे साख से कम नहीं,
मै तो मर चुका हूँ, मरने का गम नहीं,

भय तो इन लताओ से है, मौसम से है,
आते ही गरमी ये सूख कर बिखर जायेंगी,
भ्रम से इन पक्षियो को आजाद करायेंगी
सूखे में इन पक्षियों को बेघर करायेंगी,
छल से भी बड़ा है क्या इस जहाँ मे दुश्मन
तुम्हारा ये चुम्बन ये अलिंगन
तुम्हारी आकाश छूने की लालसा

Friday, September 12, 2014
Topic(s) of this poem: betrayal
COMMENTS OF THE POEM
Gajanan Mishra 13 September 2014

Tumhari aakash chhune ki lalsa, Wah, kabi wah! I salute you.10

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Aftab Alam

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RANCHI,
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