शब्दों की दादागीरी जब हदों को लांघ जाए,
तब इसे फुहड़ता की श्रेणी में क्यों ना लाई जाए ,
जनता भुलक्कड़ नहीं मजबूर है; क्या किया जाए?
जगाने वाला ही सुला जाता है, किस किस को आजमाए!
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