तेरी ज़िद, मेरी ज़िद! ! ! ! Poem by M. Asim Nehal

तेरी ज़िद, मेरी ज़िद! ! ! !

Rating: 5.0

ज़िन्दगी गुज़र रही थी सहारे से
कुछ खाव्ब लगने लगे थे प्यारे से
यह कैसी उथल पुथल हो गयी
तेरी ज़िद..............................

कुछ दिन बीते कश्तियाँ बनाने में
कुछ वक़्त लगा आशियाँ सजाने में
दरो दीवार अब किस रंग की होगी
तेरी ज़िद इस पे भी हो गयी...

दिल के अरमान फिर मचलने लगे
सब का देखा देखि यह भी करने लगे
सच की राह से कुछ उतरने के लिए
तेरी ज़िद सौ बहाने करने लगे.....

मंजिल सामने थी, साफ़ नज़र आ रही थी
रास्तों पर पढ़ी धुल भी छटती जा रही थी
लग रहा था की सब मुश्किलें आसन होगी
पीछे से कुछ आवाज़ आई और तेरी ज़िद......

मेरी भी जिद कुछ कम नहीं
तेरी जिद को देख इसने भी जोश मारा
यह भी उठ खड़ी हुई सपनो को मिटने में
मंजिले, रास्ते सब उलझ गए इनके टकराने में

उठ गया गुबार इस सुन्दर आशियाने में
खो गए निशाँ, मिटने लगे अरमान अँधेरा छाने लगा
बिजलियों की तरह ज़िद से ज़िद कढ कढ़ाने लगा
खोने लगी मोहब्बत और रोने लगी जिंदगानी

ज़िद ने जो घर कर लिया, फिर न बसने दिया किसी को
यह बस अकेले ही रहने का खाव्ब बुनने लगी
जो पिरोया था माला में सपनो का मोती,
ज़िद उन्हें एक एक कर उधेड़ने लगी,
हो गयी ज़िद ज़िन्दगी से भरी, कांटे रह गए सिर्फ जीना बन गया दुश्वारी

Thursday, August 13, 2015
Topic(s) of this poem: fight,love and art,love and friendship
COMMENTS OF THE POEM
T Rajan Evol 13 August 2015

Ha ha ha....Kya baat hai, sahi kaha aapne.

2 0 Reply
M Asim Nehal 14 October 2015

Dhanyavaad

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Aniruddha Pathak 12 February 2019

And I forgot to say, both these ghazals go to my personal favourites file.

0 0 Reply
Aniruddha Pathak 12 February 2019

हो गयी ज़िद ज़िन्दगी से भरी, कांटे रह गए सिर्फ जीना बन गया दुश्वारी The poem ends, and what a poem. From simple disagreements to serious ones. A lovely poem so well penned.

1 0 Reply
Akhtar Jawad 03 March 2016

Obstinacy is the side effect of ego and sometimes it makes life miserable. A great poem by Asim Nehal.

1 0 Reply
Rajnish Manga 28 November 2015

परस्पर विरोधाभास कई बार जीवन में तनाव व कठिनाइयाँ पैदा कर देते हैं, इस हक़ीकत को आपने अपने सधे हुए अंदाज़ में पुरज़ोर तरीके से व्यक्त किया है. मानवीय व्यवहार पर अच्छी टिप्पणी. धन्यवाद, मो. आसिम जी. मेरी भी जिद कुछ कम नहीं / तेरी जिद को देख इसने भी जोश मारा / खोने लगी मोहब्बत और रोने लगी जिंदगानी / जो पिरोया था माला में सपनो का मोती / ज़िद उन्हें एक एक कर उधेड़ने लगी,

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Kumarmani Mahakul 31 August 2015

Chamatkar apne pening kiye hen. Owe khub sundar geet hai. Mera man pasand lains......मेरी भी जिद कुछ कम नहीं तेरी जिद को देख इसने भी जोश मारा यह भी उठ खड़ी हुई सपनो को मिटने में मंजिले, रास्ते सब उलझ गए इनके टकराने में. Shukria. ..... 10

1 0 Reply
M Asim Nehal 14 October 2015

Thanks much, Dhanyavaad

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