लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है Poem by Vikas Kumar Giri

लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S बनते देखा है

लालटेन की रोशनी में पढ़ के मैंने I.A.S
बनते देखा है,
बिजली की चकाचौंध में मैंने बच्चे को
बिगड़ते देखा है,
जिनमे होती है हिम्मत उसको कुछ
कर गुजरते देखा है,
जिनको होती है दिक्कत उनको
हालात बदलते देखा है,
फूक-फूक के रखना कदम मेरे दोस्तों,
छिपकली से भी जयादा मैंने इंसानो को
रंग बदलते देखा है,
बहुत ईमानदारी से पढ़ के तैयारी करते है,
मेरे देश के बच्चे,
लेकिन कुछ भ्रष्टलोगो को इनके भविष्य से
खिलवाड़ करते देखा है,
जूनून में ही कुछ कर जाते है या बन जाते
है कुछ लोग,
बाकि को तो मैंने सड़को पे भटकते देखा है
~विकास कुमार गिरि

Saturday, April 21, 2018
Topic(s) of this poem: motivational
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Vikas Kumar Giri

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Laheriasarai, Darbhanga
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