Dost Ya Dushman Poem by Devesh Chauhan

Dost Ya Dushman

Rating: 5.0


वो जो शक्स आँखों से सौदा करता है हर रोज
कोई पूछे उससे दिल का कसूर कितना है
हम तो कारोबारी कभी थे ही नहीं।.
क्यों पूछते हो की व्यापार कितना है….
मेरे आन्सुओ की कीमत पूछने वाले 'पत्थर'
जरा ये तो बता की तू इंसान कितना है
फरेब चेरेह से नहीं दिखता किसी इंसान का 'देव'
वक़्त बताता है की जज्बात कितना है
यहाँ पर यार ही ऐसे है जो दुश्मनी करते है 'हर रोज'
दुश्मन तू ही बता तेरा एहसान कितना है
मेरे अलावा भी है कई और तेरे दर्द से वाकिफ 'मेरे यार '
बेवफाई के बाज़ार में तेरा नाम कितना है। ….
बेवफाई के बाज़ार में तेरा नाम कितना है। ….
देवेश

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
this poem is a based on todays fast friendship which reacts like fast food its not permanent which is now not true friendship.....hows todays friendships works...read the poem...
COMMENTS OF THE POEM
Bharti Chandwani 03 October 2013

bahut khub...............

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Devesh Chauhan

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Dibiyapur auraiya
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