जिन्दगी को सजाना ..jindgi ko sajaanaa Poem by Mehta Hasmukh Amathaal

जिन्दगी को सजाना ..jindgi ko sajaanaa

जिन्दगी को सजाना

जिनका नाम जिंदगी है
खुदा की बस एक़ बंदगी है
हम क्यों सोचते है आगे?
क्यों मजबूर होकर हम और कुछ मांगे?

नाही कुछ पाना है
बस आगे चलते जाना है
मिल जाय बंदा अपने सरीखा
तो बना देना है सखा।

बस जिन्दगी से हमें कोई गिला नहीं
जो नहीं मिला है वो किस्मत में नहीं
जब दिल लगा दिया है परवरदीगार से
तो क्यों आस रखे कोई मददगार से?

हाथ खुला रखना है हमें
बस देनेकी ख़ुशी है और कोई तमन्ना नहीं हमें
बाटेंगे खुशियोंका खजाना
बस अब तो है जिन्दगी को सजाना

Sunday, October 5, 2014
Topic(s) of this poem: poem
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Mehta Hasmukh Amathaal

Mehta Hasmukh Amathaal

Vadali, Dist: - sabarkantha, Gujarat, India
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