माँ अगर तू जन्म न देती तो मैं दुनिया ही न देख पाता
माँ तू खुद भूखी रहकर खिलाई ना होती तो मैं भूखा ही रह जाता
अगर तू चलना न सिखाती तो मैं चल नहीं पाता
माँ अगर तू लोरी गा के सुनाइ ना होती तो मैं चैन से सोया नहीं होता|
जब तेरी तबियत ख़राब हो तो पूछने पर 'ठीक हूँ' बताना
जब मेरी तबियत ख़राब हो तो तेरा तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाना
मेरी तबियत ख़राब देख कर काश तू छुप के रोइ न होती|
माँ अगर तू स्कूल न भेजती तो मैं अनपढ़ ही रह जाता
अगर तू घर पर ना पढ़ाती तो मैं अज्ञानता के अंधकार में भटकता ही रह जाता
माँ तेरा ऐहसान कभी चुकाया नहीं जा सकता|
याद है मुझे बोर्ड के परीक्षा के समय तेरा रोज 4-5 बजे सुबह को जगाना
और मेरा बार-बार उठ कर सो जाना
माँ अगर तू बार-बार उठाई ना होती तो
मैं यौवन के मधुर सपनों में खोया ही रह जाता
माँ तू जगाइ न होती तो मैं सोया ही रह जाता
विकास कुमार गिरि
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The poem is a wonderful tribute by the poet to his mother. The instances cited by him bear ample testimony to the substantial place of a mother in the family. Thanks for sharing. जब तेरी तबियत ख़राब हो तो पूछने पर 'ठीक हूँ' बताना जब मेरी तबियत ख़राब हो तो तेरा तुरन्त डॉक्टर के पास ले जाना
Thank You very much sir.
Thank You Sir