Tarun Upadhyay Poems

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11.
बढे कदम रुकते नहीं

बढे कदम रुकते नहीं

बढे कदम रुकते नहीं
रुके कदम बड़ते नहीं
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बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है
वहां मैं मेरे बाप के नाम से जाना जाता हूँ
और यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ
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13.
जा बेटी तू पराई है

क्यूँ दुनिया ने ये रस्म बनाई है
करके इतना बड़ा कहते है जा बेटी तू पराई है
पहले दिन से ही उसको ये पाठ पढाया जाता है
सजा के लाल जोड़े में दुल्हन बनाया जाता है
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चाँद सूरज, सितारे सभी दिलनशीं,
छा रही हो जहाँ हर तरफ ही खुशी,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||
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चाँद सूरज, सितारे सभी दिलनशीं,
छा रही हो जहाँ हर तरफ ही खुशी,
ऐसे बचपन को मैं ढूँढता हूँ ||

खो गया जो जवानी के सैलाब में,
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16.
भारत की बदलती संस्कृति

कुते को घुमाना याद रहा, और गाय को रोटी देना भूल गये ।
पार्लर का रास्ता याद रहा, लम्बी चोटी भूल गये ।
फ्रीज, एसी, कुलर याद रहा पानी का मटका भूल गये ।
रिमोट तो हमको याद रहा, बिजली का खटका भूल गये ।
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17.
।। जय माँ शारदा ।।

।। जय माँ शारदा ।।
हे विद्या की देवी आपको
शत-शत कोटि प्रणाम।।
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18.
देश आगे कैसे बढे

जब विदेशी Status Symbol हो और
स्वदेशी Cheap लगे तो देश आगे कैसे बढे.
जब नहाने के बाद Deo लगाना जरुरी और
भगवान के सामने सर झुकना Boring लगे
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ये आज क्यों कोई.. कमी सुलगी
पाँव रक्खा तो झट.. ज़मीं सुलगी
कुछ मौसम ही.. घटा में भीगा है
या आँखों से ही.. ये नमी सुलगी
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हम के फेकलू पेट माड़ा के
माईहो तू नीके काइलू
हम के ना जनमा के
का करिती हम तोहारा आताना
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