Nisha Bala

Nisha Bala Poems

दादाजी को पोता प्यारा, मानो जग मे हो वो सबसे न्यारा|

दादाजी का बस स्टैंड पर सेब खिलाना, पोते की कहानियों मे उनका आना जाना|
मानो पृथ्वी से कहीं दूर, किसी और ही ग्रह मे रहते हों,
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न जाने गुड़िया कब बड़ी हो गई...
एक नए परिवार को जोड़ने की कड़ी हो गई|
जिसके चहचाने से खिल उठता था मेरा आँगन,
उस से जगमगाता है अब किसी और का प्रांगण|
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3.

मैंने पूछा मन से ख़ुशी मिली या नहीं, अब तो कक्षा मे अव्वल जो आते हो?
मन बोला, अरे अभी कहाँ, बस बढ़िया से कॉलेज मे दाखिला हो जाये|

मैंने पूछा मन से ख़ुशी मिली या नहीं, अब तो माने हुए कॉलेज मे जो जाते हो?
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4.

सोच रही हूँ ऑंखें मूंदें, क्या बचपन फिर लौट सकेगा..
इस जीवन की पटरी पर, कब तक मस्तिष्क यूँ ही ईंधन जैसा फुकेगा|

बचपन से हैं सुनते आये, जो बीत गया सो बीत गया..
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क्या देखा है तुमने कभी रेगिस्तान का चश्मा (mirage) ,
हाल ही मे देखा है मैंने उसे आँखों से ओझल होते हुए|
मानो ज़िन्दगी का पाठ, साक्षात ईश्वर तुम्हे बतलाने आये हों..
पर इंसान कहाँ इन इशारों को समझता है,
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The Best Poem Of Nisha Bala

Dadaji

दादाजी को पोता प्यारा, मानो जग मे हो वो सबसे न्यारा|

दादाजी का बस स्टैंड पर सेब खिलाना, पोते की कहानियों मे उनका आना जाना|
मानो पृथ्वी से कहीं दूर, किसी और ही ग्रह मे रहते हों,
जाने अनजाने अपने इस रिश्ते से, कितनी ही अनकही बातें कहते हों|
अदभुद इन दोनों का रिश्ता, विचित्र इनका प्यार..

दादाजी को पोता प्यारा, मानो जग मे हो वो सबसे न्यारा|

शब्दकोष मे ऐसी व्याख्या नहीं, जो इस स्नेह का वर्णन कर पाये|
लूट लो इस स्नेह को, जाने कब खज़ाना लुप्त हो जाये?

दादाजी को पोता प्यारा, मानो जग मे हो वो सबसे न्यारा|

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