क्या देखा है तुमने कभी रेगिस्तान का चश्मा (mirage) ,
हाल ही मे देखा है मैंने उसे आँखों से ओझल होते हुए|
मानो ज़िन्दगी का पाठ, साक्षात ईश्वर तुम्हे बतलाने आये हों..
पर इंसान कहाँ इन इशारों को समझता है,
वो तो मात्र विज्ञान का चश्मा पहनकर इस को भी परखता है|
ज़िन्दगी की दौड़ मे इतना मशगूल है,
की भागते हुए कौन/क्या पीछे छूटा इस सब से अलग दूर है|
गिरते-पड़ते, जैसे-तैसे मंज़िल तक तो पहुंच गया है,
और कैसे नै पहुंचे आखिर सर्वश्रेष्ठ प्राणी जो ठहरा|
दुःख तो है बस एक बात का, जो ढूंढने निकला था वो तो मिला नहीं,
मन का फूल खिला नहीं, अब सोचे है क्या करूँ बहुत समय गँवा दिया|
जो चाहा वो तो न पाया, अपितु अपनों का मन भरपूर दुखाया,
बेचारा इंसान अब है बहुत परेशान...
कभी सोचता ये कर लूँ, तो सुखी हो जाऊँगा, ये जान लूँ, तो दुःख दूर भगा पाऊंगा,
खोज है इसकी निरंतर जारी, कन्धों पर है भारी ज़िम्मेवारी|
थक हार के जगा रहा है ईश्वर को भी, मेरे ही प्रारब्ध (destiny) मे ये सब लिखा क्यों ही?
मैंने तो कोई पाप न किया, अपितु निरंतर तेरा जाप किया|
ईश्वर बोले, बार-बार इशारों से तुमको हूँ बतलाता, ज़िन्दगी का सही मान भागना नहीं कहलाता,
हे पृथ्वी के सर्वश्रेष्ट प्राणी, सुन मेरी ये वाणी...जो बीत गई सो बीत गई,
ख़ुशी को जो तू बहार है ढूंढें, वो तो तुझमे हे भरपूर समायी|
अब इस खोज को तनिक विराम लगा, लक्षय तक पहुंचने मे, सफर का मज़ा न गँवा,
ले हेर श्वास ऐसे जैसे अगला मिले न मिले, अपने सर्वश्रेष्ठ होने का यूँ ही मान बढ़ा|
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Have you ever seen the mirage? I have seen this well in my own eyes and its wonder of thirst to run behind like a deer's thirst. Who the lovely deer runs behind to get water and does not get ever and dies in thirst. Very beautifully presented present day situation and running of modern youth behind materialism. Excellent work.