जब अपने रूठ जाते हैं... Poem by Vikash Ranjan

जब अपने रूठ जाते हैं...

जब दिन बुरे दिन हो ज़िंदगी के हर पल बूरा होता है,
जब अपने रूठ जाते हैं कोई ना आसरा होता है,
हर कोई चाहता है की तुम टूटकर बिखर जाओ,
कोई नही यहा किसी का सहारा होता है |
जब दिन बुरे दिन हो ज़िंदगी के हर पल बूरा होता है,
जब अपने रूठ जाते हैं कोई ना आसरा होता है |

महफिल में गूँजती शहनाईयां भी ना जाने क्यूँ वीरान लगती है,
हर तरफ सन्नाटा होता है दिल भी खामोश रोता है,
जब दिन बुरे दिन हो ज़िंदगी के हर पल बूरा होता है,
जब अपने रूठ जाते हैं कोई ना आसरा होता है |

दिल की तन्हाइयों का ना कोई मेहमान होता है,
हर कोई तब लगने अंजान लगता है,
लाख कोशिशों के बाद भी मुस्किलों का तूफान मिलता है,
जब दिन बुरे दिन हो ज़िंदगी के हर पल बूरा होता है,
जब अपने रूठ जाते हैं कोई ना आसरा होता है |

छू लेने की चाह दिल में होती है पर दूर कितना आसमान लगता है,
ना चाहते हुए भी जाने क्यूँ मन परेशन लगता है,
रखता है जब हाथ कंधे पे कोई, फिर वही भगवान लगता है,
जब दिन बुरे दिन हो ज़िंदगी के हर पल बूरा होता है,
जब अपने रूठ जाते हैं कोई ना आसरा होता है |

Wednesday, October 19, 2016
Topic(s) of this poem: life,lifestyle,sadness
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