दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा Poem by NADIR HASNAIN

दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा

दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा
महजबीं माहे रू मरहबा मरहबा

गुलबदन जाँनशीं मोहिनी गुफ़्तोगु
ऐसी हुस्नो अदा मेरी जाँ है फ़िदा
दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा


है वोह खिलता कँवल मेरी जाने ग़ज़ल
मैं हूँ शाहेजहाँ वोह मुमताज़ महल

नैन हैं नरगिसी ज़ुल्फ़ काली घटा
मुश्क ओ अम्बर से तर है वोह बादे सबा
दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा


मेरे दिल का सोरुर मेरी शान ओ ग़रूर
बा अदब बा हया है मेरी कोहेनूर

मौज खाती लहर चौंधवीं का क़मर
उसकी हर एक अदा सबसे बिलकुल जुदा
दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा


दूर उनसे रहूँ मैं गवारा नहीं
कोई दूजा ये दिल का सहारा नहीं

उनसे होकर जुदा मैं तो मरजाऊँगा
कह के दुनियां से ये अलविदा अलविदा
दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा


By: नादिर हसनैन

दिल नशीं दिलरुबा हूर है बा ख़ुदा
Saturday, December 3, 2016
Topic(s) of this poem: love
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