• दुआ Poem by Aftab Alam

• दुआ

Rating: 5.0

मुझको इंसाँ बनादे,
ऐ मेरे खुदा,
तेरी रहमत से हम न
कभी हों जुदा//
शुक्र है तेरा ऐ
मालिके कायनात,
तेरी रहमो-करम की
करें कैसे बात//
ताब हम मे नहीं
तेरा देखें जलाल,
क्यों जमीं पर हम आए,
न हो ये मलाल//
तू ही मालिक मेरा
तू ही खालिक मेरा,
मेरा कोइ नही है,
सिवाए तेरा//
फूल मुझको बना,
मुझमें खुश्बू तू भर,
लुटाता खुशबू चलूं,
मैं चलूं जिस डगर//
उस रह मे न मुझको
चलाना खुदा,
जिस रह से हो जाऊँ
मैं तुझसे जुदा//

आफ़ताब आलम'दरवेश'

Friday, September 19, 2014
Topic(s) of this poem: prayer
COMMENTS OF THE POEM
Akhtar Jawad 19 September 2014

Aameen, bahut khoobsoorat dua hay, Allah qubool karey.

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