जाना नही चाहता मैं काशी, ना जाना चाहता काबा!
ना ही कोई सिद्ध स्वामी, ना बनना चाहता हूँ बाबा! !
ना कोई बड़ा चित्रकार, ना कोई साहित्यकार बनूँ!
कोई कवि भी ना बनूँ, ना कोई शिल्पकार बनूँ! !
कोई महान संगीतकार या कोई गायक नही बनना!
देश सेवा का ढोंग दिखा के, नेता नायक नही बनना! !
कैसा था ये देश कभी और अब कैसा हो गया है!
देश पे मर मिटने का भी अरमान खो गया है! !
चाहत थी की बन जाऊं मैं कोई फिल्मी कलाकार!
या महान वैज्ञानिक बन, जीत लूँ नोबल पुरूस्कार! !
हर बड़ा काम मैं ही करूँ, ये ज़रूरी तो नही!
सफलता ना मिली अगर तो मरना ज़रूरी तो नही! !
हे ईश्वर...मुझे इन सब चक्करों से बाहर निकाल दे!
केवल एक सामान्य से मानव के साँचे मे ढाल दे! !
बस 'पवन' मैं अपने पितरों का मान बन जाऊं!
कुछ बनूँ ना बनूँ एक अच्छा इंसान बन जाऊं! !
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem