' लबों को हरक़त दे दो, ज़रा सी ज़हमत कर दो;
इश्क़ की बंदगी में खुद को, आज तुम क़ुर्बत कर दो;
मिला कर जिस्म को रूह से, रूमानी इश्क़ को दिल से;
धड़कते दिल की धड़कन को, आज तुम सरगम दे दो;
लबों को............................
जो तेरे गेसूं हिलते हैं, यूँ मानो बादल मिलते हैं;
जो इनकी खुश्बू आती है, फ़िज़ा को महका जाती है;
नशीली आँखों में तेरी, जंहा की मस्ती बस्ती है;
जो आँखें एक बार चख ले, तो फिर चखने को तरसती है;
हया भी आईने में जब, तेरा दीदार करती है;
मुक़म्मल हो गयी है ज़न्नत, सैकड़ों बार कहती है;
तेरी ख़िदमत में अब मुझको, आज एक ज़ाहिद बनने दो;
इबादतख़ाने में मेरे, तेरी एक प्यारी मूरत हो;
मेरी इस पाक सी ख्वाईश को, कीमती सी फ़रमाइश को;
डाल कर झोली में मेरी, फ़क़ीरी को रुख़्सत कर दो;
लबों को हरक़त दे दो, ज़रा सी ज़हमत कर दो;
इश्क़ की बंदगी में खुद को, आज तुम क़ुर्बत कर दो;
मिला कर जिस्म को रूह से, रूमानी इश्क़ को दिल से;
धड़कते दिल की धड़कन को, आज तुम सरगम दे दो;
लबों को............................ '
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