"गंगा के धारे"
ये गंगा के धारे
ना जाने कब से बह रहे हैं,
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"वारांणसी है नाम इसका"
ये घाटों की नगरी
तिलिस्मों से भरी,
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संकट
रेल की पटरी पर दौड़ती ट्रेन,
पीछे की ओर भागते हरे भरे जंगल,
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आज कुछ खास है
आज तो फिजाऐ बदली-बदली हैं,
अलमस्त सुनहली धूप धरती पे है,
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"डाली पेड़ की"
सामने खड़े पेड़ की
एक डाली क्यों सूखी है?
उसे कोई संताप है
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