बैट टूटते Poem by Ajay Srivastava

बैट टूटते

कानून के रक्षको से बॉउंड्री बनायी जाती नही
इमानदारो से खेल भावना से खेला जाता नहीं
भ्रष्टाचारी फॉलो ओन करवाते जाते है
देश का साधरण जन देश की अर्थव्यवस्था का
बैट टूटते देख शोर मचाती रह जाती है।

बैट टूटते
Tuesday, October 13, 2015
Topic(s) of this poem: failure
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success