छके Poem by Ajay Srivastava

छके

Rating: 5.0

प्रचार तंत्र वालो ने ताली बजा बजा कर

जांच विभाग के आगे जो नाच कर

पूछा कहाँ हुआ किस घर का हुआ ।

तभी बिना रुके मंत्री के ढोलक की आवाज ने

जांचकर्ता को भी नाचने के लिए मजबूर कर दिया ।

फिर क्या था वादी ने अपने सुनहरे गोटे का संदूक दिखा कर

जांच करता से कहा ढकन उठा कर दिखाऊ क्या ।

छके तो मन माना ले गए ।

बेचारे बेबस जांचकर्ता इन भ्रष्टाचारी छको से
अपने देश के बच्चो के लिए खली दुआए लेते रह गए।

छके
Saturday, October 17, 2015
Topic(s) of this poem: helplessness
COMMENTS OF THE POEM
Abdulrazak Aralimatti 23 October 2015

Verily, a true depiction of the politicians and those concern with politicians......10

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Rajnish Manga 17 October 2015

यहाँ आपने व्यवस्था व सत्ता का सुख भोग रहे नेताओं द्वारा तथाकथित स्वायत्त संस्थाओं के अधिकारियों को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने पर सुंदर कटाक्ष किया है. धन्यवाद. तभी बिना रुके मंत्री के ढोलक की आवाज ने जांचकर्ता को भी नाचने के लिए मजबूर कर दिया ।

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