वो माँ का एक साड़ी को तरसना याफ आता है Poem by Lalit Kaira

वो माँ का एक साड़ी को तरसना याफ आता है

Rating: 5.0

खिलोनों के लिए, भाई से लड़ना याद आता है
बिना दीवार वाला घर का अंगना याद आता है

छुपाती है मेरी बीवी बचत चावल के डिब्बे में
वो माँ का एक साड़ी को तरसना याफ आता है

मेरी खांसी पे झुंझलाता है जब सारा मेरा कुनबा
खड़ी फसलों पर ओलों का बरसना याद आता है

डराते हैं अँधेरी रात में यादों के साए जब
पडोसी छत में चन्दा का चमकना याद आता है

ललित दिख जाता है वो अक्स गोया ख्वाब में भी तो
भरी महफ़िल में प्यालों का छलकना याद आता है

Monday, November 2, 2015
Topic(s) of this poem: life,love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 02 November 2015

Dazzling composition. ललित जी, इस अद्वितीय ग़ज़ल के लिए आपको धन्यवाद से पहले हृदय से बधाई देना चाहता हूँ. इसे पढ़ते हुए जो आत्मिक आनंद की अनुभूति हुई, उसकी कोई तुलना नहीं है. मेरी शुभकामनाएं.

1 0 Reply
Lalit Kaira 21 December 2017

आपकी सस्नेह शुभकामना के लिए आभार आदरणीय...

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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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