पागल पन Poem by Ajay Srivastava

पागल पन

शिक्षत और समझदार हुँ
फिर भी चेतावनी को अनदेखा कर
नशीले उत्पाद का सेवन कर लेते 11
कदम कदम पर कानून और कानून के रखवाले
फिर भी कानून तोड लेते है
और अपनी सुविघा से नियम बना लेते है 11
बात बात पर अपमानजनक भाषा का उपयोग करते है
कभी कोइ यह नही पूछता यह कहाँ से सीखा
उलटा खुद ही बोलने लगते है - क्या पुरुष या महिला 11
रिशवत की बात बहुत निराली है
लेना देना गेरकानूनी है
फिर भी लेने देने वालो की भरमार है 11
यह कैसा पागल पन है
कोन रोकेगा इस पागलपन को
कभी तो इस पागल पन से तोबा कर लो 11
और नही तो पागल पन के इलाज के लिए
अस्पताल खोल दो ताकी कुछ सुघार हो सके 11

COMMENTS OF THE POEM
Gajanan Mishra 01 January 2013

Where is true education Mr Ajay ? Where are we going really? A true question of this time. Thanks for the poem.

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