एक कोशिश Poem by Ajay Srivastava

एक कोशिश

कुछ करने को कहता तुम्हारा प्रोत्साहन।
स्वय से पूछने को कहता है तुम्हारा गुस्सा।
अपने आप को टटोलने लगता हुँ तुम्हारी बेरुखी देख।
मधुर मुस्कान और अच्छा करने को कहती है।

हर पल, हर कदम और हर दिन।
कुछ कर गुजरने की चाहत को उत्पन करती है।
सब कुछ नहीं तो थोड़ा सा ही सही।
प्रयास रत रहने को कह जाता है तुम्हारा स्वर।

तुम्हारे स्वर कानो को छूते ही प्रेरित कर देते है।
हर स्वर एक सीख बन जाती है जैसे कह जाती है।
पूर्णतया नहीं तो आंशिक रूप से संतुष्टि दे दू।
वो भी नहीं तो संतुष्टि की दिशा में एक कोशिश ही सही।

एक कोशिश
Saturday, November 28, 2015
Topic(s) of this poem: trying
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