वो कहते है Poem by Ajay Srivastava

वो कहते है

Rating: 5.0

वो कहते है पराए हो गए|
हम कहते है पराए अपने हो गए|

वो कहते धर को छोड चले|
हम कहते धर को जोडने चले|

वो कहते है मर्यादा मे बधने चले|
हम कहते मर्यादा सीखाने चले|

वो कहते है प्यार देने चले|
हम कहते है प्यार को जोडने और बडाने चले|

वो कहते है निभाना होगा व मान सम्मान करना होगा|
हम कहते है कैसे निभाया जाता है सिखाने चले|

वो कहते है राह कठिन है|
हम कहते है शक्तिशाली ही कठिन राह पर चलते है |
और सफलता को पा लेते है|

वो कहते है
Saturday, December 12, 2015
Topic(s) of this poem: understanding
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 December 2015

do pakshon ke vichar me ekroopta na ho to samajhdari se samayojan ki koshish jaruri hai. dhanywad, mitr.

0 0 Reply
Ajay Srivastava 14 December 2015

Thank you

0 0
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success