हम सब Poem by Ajay Srivastava

हम सब

Rating: 5.0

सोने की तरह चमक तुझ मे
सबको अपने मे समहित करने वाला ह्रदय तुझ मे
विवधता की समपुर्णता समाई है तुझ मे
सहज ही सबको अपना बना लेता है|

मतभेद को बडी सरलता से दूर करने की शक्ति तुझ मे|
मानवता को हमेशा प्रोतसहित करना तेरा कर्म है|
सबको एक सा मान और सम्मान देना तेरा स्वाभाव है|

यही तो तेरे असतित्व की पहचान है|
यू ही नही नदीयो को पूजते है यहॉ पर
यू ही नही विभन्न धर्म के लोग यहॉ शीष झुकाते है|
यही है तुम्हारा, हमारा हम सब का भारत|

हम सब
Saturday, December 12, 2015
Topic(s) of this poem: feelings
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 12 December 2015

Bharteeyata ki pahchan karane wali is sundar kavita ke liye mera aabhar sweekar karen, ajay ji. kam shabdon me aapne itni badi baat kah di hai.

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