निडरता Poem by Ajay Srivastava

निडरता

जूठ को सच से

बेईमान को ईमानदार से

कमजोर को शक्तिशाली से

हर किसी को लगता है |


मिथ्या एहसास भी कराता है|

न चाहते हुए भी दिल में जगह बना लेता है|

इसको ख़रीदा भी जाता है |

इसको दिखाया भी जाता है|


सामना करने से सोचने लगता है|

आत्म विश्वास से भाग जाता है|

आत्मशक्ति को बढ़ाओ और डर का सामना कर

जीत लो निडरता यही समय की आवश्यकता है |

निडरता
Saturday, December 12, 2015
Topic(s) of this poem: fear
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